Today Hukamnama Sri Darbar Sahib Amritsar Sahib, Harmandir Sahib Goldentemple, Morning Mukhwak, Date:- 18-10-20, Ang. 688
Hukamnama in Hindi With Meanings
धनासरी महला १ ॥ जीवा तेरै नाइ मनि आनंदु है जीउ ॥ साचो साचा नाउ गुण गोविंदु है जीउ ॥ गुर गिआनु अपारा सिरजणहारा जिनि सिरजी तिनि गोई ॥ परवाणा आइआ हुकमि पठाइआ फेरि न सकै कोई ॥ आपे करि वेखै सिरि सिरि लेखै आपे सुरति बुझाई ॥ नानक साहिबु अगम अगोचरु जीवा सची नाई ॥१॥ तुम सरि अवरु न कोइ आइआ जाइसी जीउ ॥ हुकमी होइ निबेड़ु भरमु चुकाइसी जीउ ॥ गुरु भरमु चुकाए अकथु कहाए सच महि साचु समाणा ॥ आपि उपाए आपि समाए हुकमी हुकमु पछाणा ॥ सची वडिआई गुर ते पाई तू मनि अंति सखाई ॥ नानक साहिबु अवरु न दूजा नामि तेरै वडिआई ॥२॥ पद्अर्थ: जीवा = जीऊँ, मैं जी पड़ता हूँ, मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा हो जाता है। तेरे नाइ = तेरे नाम में (जुड़ के)। मनि = मन में। जीउ = हे प्रभू जी! सचो साचा = सदा ही स्थिर रहने वाला। गुर गिआनु = गुरू का दिया हुआ ज्ञान (बताता है कि)। जिनि = जिस (प्रभू) ने। सिरजी = पैदा की है। तिनि = उसी (प्रभू) ने। गोई = नाश की है। परवाणा = सदा। हुकमि = हुकम अनुसार। पठाइआ = भेजा हुआ। फेरि न सकै = वापस नहीं कर सकता। करि = पैदा कर के। वेखै = संभाल करता है। सिरि सिरि = हरेक जीव के सिर पर। लेखै = लेख लिखता है। बुझाई = समझाता है। अगम = अपहुँच। अगोचरु = (अ+गो+चरु। गो = इन्द्रियां)। जिस तक इन्द्रियों की पहुँच नहीं हो सकती। सची नाई = सदा स्थिर रहने वाली महिमा वडिआई (करके)। नाई = वडिआई, महिमा, उपमा, नाम की मशहूरी।1।
सरि = बराबर। जाइसी = चला जाएगा। निबेड़ु = फैसला, खात्मा (जनम-मरन के चक्कर का)। भरमु = भटकना। चुकाऐ = दूर करता है। कहाऐ = सिफत सालाह करवाता है। अकथु = वह प्रभू जिसके गुण बयान नहीं किए जा सकते। सच महि = सदा स्थिर प्रभू में। सचु = सदा स्थिर प्रभू। हुकमी हुकमु = हुकम के मालिक का हुकम। साची = सदा स्थिर रहने वाली। ते = से। मनि = मन में। अंति = आखिरी समय में। सखाई = साथी। वडिआई = आदर।2
अर्थ: हे प्रभू जी! तेरे नाम में (जुड़ के) मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा होता है, मेरे मन में खुशी पैदा होती है।
हे भाई! परमात्मा का नाम सदा स्थिर रहने वाला है, प्रभू गुणों (का खजाना) है और धरती के जीवों के दिलोंकी जानने वाला है। गुरू का बख्शा हुआ ज्ञान बताता है कि सृजनहार प्रभू बेअंत है, जिसने ये सृष्टि पैदा की है, वही इसका नाश करता है। जब उसके हुकम में भेजा हुआ आमंत्रण आता है तो कोई भी जीव (उसके बुलावे को) रोक नहीं सकता। परमात्मा स्वयं ही (जीवों को) पैदा करके आप ही संभाल करता है, आप ही हरेक जीव के सिर पर (उसके किए कर्मों के अनुसार) लेख लिखता है, खुद ही (जीव को सही जीवन-राह की) सूझ बख्शता है। मालिक-प्रभू अपहुँच है, जीवों की ज्ञानेन्द्रियों की उस तक पहुँच नहीं हो सकती।
हे नानक! (उसके दर पर अरदास कर, और कह– हे प्रभू!) तेरी सदा कायम रहने वाली सिफत सालाह करके मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा होता है (मुझे अपनी सिफत सालाह बख्श)।1।
पद्अर्थ: जीवा = जीऊँ, मैं जी पड़ता हूँ, मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा हो जाता है। तेरे नाइ = तेरे नाम में (जुड़ के)। मनि = मन में। जीउ = हे प्रभू जी! सचो साचा = सदा ही स्थिर रहने वाला। गुर गिआनु = गुरू का दिया हुआ ज्ञान (बताता है कि)। जिनि = जिस (प्रभू) ने। सिरजी = पैदा की है। तिनि = उसी (प्रभू) ने। गोई = नाश की है। परवाणा = सदा। हुकमि = हुकम अनुसार। पठाइआ = भेजा हुआ। फेरि न सकै = वापस नहीं कर सकता। करि = पैदा कर के। वेखै = संभाल करता है। सिरि सिरि = हरेक जीव के सिर पर। लेखै = लेख लिखता है। बुझाई = समझाता है। अगम = अपहुँच। अगोचरु = (अ+गो+चरु। गो = इन्द्रियां)। जिस तक इन्द्रियों की पहुँच नहीं हो सकती। सची नाई = सदा स्थिर रहने वाली महिमा वडिआई (करके)। नाई = वडिआई, महिमा, उपमा, नाम की मशहूरी।1।
सरि = बराबर। जाइसी = चला जाएगा। निबेड़ु = फैसला, खात्मा (जनम-मरन के चक्कर का)। भरमु = भटकना। चुकाऐ = दूर करता है। कहाऐ = सिफत सालाह करवाता है। अकथु = वह प्रभू जिसके गुण बयान नहीं किए जा सकते। सच महि = सदा स्थिर प्रभू में। सचु = सदा स्थिर प्रभू। हुकमी हुकमु = हुकम के मालिक का हुकम। साची = सदा स्थिर रहने वाली। ते = से। मनि = मन में। अंति = आखिरी समय में। सखाई = साथी। वडिआई = आदर।2
अर्थ: हे प्रभू जी! तेरे नाम में (जुड़ के) मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा होता है, मेरे मन में खुशी पैदा होती है।
हे भाई! परमात्मा का नाम सदा स्थिर रहने वाला है, प्रभू गुणों (का खजाना) है और धरती के जीवों के दिलोंकी जानने वाला है। गुरू का बख्शा हुआ ज्ञान बताता है कि सृजनहार प्रभू बेअंत है, जिसने ये सृष्टि पैदा की है, वही इसका नाश करता है। जब उसके हुकम में भेजा हुआ आमंत्रण आता है तो कोई भी जीव (उसके बुलावे को) रोक नहीं सकता। परमात्मा स्वयं ही (जीवों को) पैदा करके आप ही संभाल करता है, आप ही हरेक जीव के सिर पर (उसके किए कर्मों के अनुसार) लेख लिखता है, खुद ही (जीव को सही जीवन-राह की) सूझ बख्शता है। मालिक-प्रभू अपहुँच है, जीवों की ज्ञानेन्द्रियों की उस तक पहुँच नहीं हो सकती।
हे नानक! (उसके दर पर अरदास कर, और कह– हे प्रभू!) तेरी सदा कायम रहने वाली सिफत सालाह करके मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा होता है (मुझे अपनी सिफत सालाह बख्श)।1।
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