Hukamnama sahib Darbar sahib Amritsar sahib, morning Mukhwaak, 28/10/2020, ang No. 738
Hukamnama sahib in English
Hukamnama sahib in Hindi
सोरठि महला ३ दुतुकी ॥ निगुणिआ नो आपे बखसि लए भाई सतिगुर की सेवा लाइ ॥ सतिगुर की सेवा ऊतम है भाई राम नामि चितु लाइ ॥१॥ हरि जीउ आपे बखसि मिलाइ ॥ गुणहीण हम अपराधी भाई पूरै सतिगुरि लए रलाइ ॥ रहाउ ॥ कउण कउण अपराधी बखसिअनु पिआरे साचै सबदि वीचारि ॥ भउजलु पारि उतारिअनु भाई सतिगुर बेड़ै चाड़ि ॥२॥ मनूरै ते कंचन भए भाई गुरु पारसु मेलि मिलाइ ॥ आपु छोडि नाउ मनि वसिआ भाई जोती जोति मिलाइ ॥३॥ हउ वारी हउ वारणै भाई सतिगुर कउ सद बलिहारै जाउ ॥ नामु निधानु जिनि दिता भाई गुरमति सहजि समाउ ॥४॥ {पन्ना 638}
नोट: देखिए गुरू नानक देव जी की अष्टपदी नंबर 4, वह भी दुतुकी है। उसमें भी शब्द ‘भाई’ का प्रयोग वैसे ही हुआ है जैसे इसमें। उसमें भी ‘निगुणिआं’ का ही वर्णन आरम्भ होता है। मतलब, गुरू अमरदासजी के पास गुरू नानक देव जी की सारी बाणी मौजूद थी।
पद्अर्थ: निगुणिआ नो = गुण हीन मनुष्यों को। आपे = खुद ही। भाई = हे भाई! लाइ = लगा के। नामि = नाम में।1।
बखसि = मेहर कर के। मिलाइ = मिला लेता है। अपराधी = पापी। सतिगुरि = गुरू ने। रहाउ।
बखसिअनु = उसने बख्श लिए हैं। कउण कउण = कौन कौन से? बेअंत। साचै सबदि = सदा स्थिर प्रभू की सिफत सालाह वाले शबद से। वीचारि = विचार में (जोड़ के)। उतारिअनु = उसने पार लंघा दिए हैं। बेड़ै = बेड़े में। चाढ़ि = चढ़ा के।2।
मनूरै ते = जंग लगे लोहे से। कंचन = सोना। मेलि = मिला के। आपु = स्वै भाव। मनि = मन में।3।
हउ = मैं। वारी = कुर्बान। वारणै = सदके। कउ = को, से। सद = सदा। बलिहारै = कुर्बान। जाउ = जाऊँ, मैं जाता हूँ। निधानु = खजाना। जिनी = जिस (गुरू) ने। सहजि = आत्मिक अडोलता में। समाउ = समाऊँ, मैं लीन रहता हूँ।4।
अर्थ: हे भाई! हम जीव गुणों से वंचित हैं, विकारी हैं। पूरे गुरू ने (जिन्हें अपनी संगति में) मिला लिया है, उनको परमात्मा खुद ही मेहर करके (अपने चरणों में) जोड़ लेता है। रहाउ।
हे भाई! गुणों से वंचित जीवों को सतिगुरू की सेवा में लगा के परमात्मा खुद ही बख्श लेता है। हे भाई! गुरू की शरण-सेवा बड़ी श्रेष्ठ है, गुरू (शरण आए मनुष्य का) मन परमात्मा के नाम में जोड़ देता है।1।
हे प्यारे! परमात्मा ने अनेकों ही अपराधियों को गुरू के सच्चे शबद के द्वारा (आत्मिक जीवन की) विचार में (जोड़ के) माफ कर दिया है। हे भाई! गुरू के (शबद-) जहाज में चढ़ा के उस परमात्मा ने (अनेकों जीवों को) संसार समुंद्र से पार लंघाया है।2।
हे भाई! जिन मनुष्यों को पारस गुरू (अपनी संगति में) मिला के (प्रभू चरणों में) जोड़ देता है, वे मनुष्य सड़े हुए लोहे से सोना बन जाते हैं। हे भाई! सवै भाव त्याग के उनके मन में परमात्मा का नाम आ बसता है। गुरू उनकी सुरति को प्रभू की ज्योति में मिला देता है।3।
हे भाई! मैं कुर्बान जाता हूँ, मैं बलिहार जाता हूँ, मैं गुरू से सदा ही सदके जाता हूँ। हे भाई! जिस गुरू ने (मुझे) परमात्मा का नाम खजाना दिया है, उस गुरू की मति ले के मैं आत्मिक अडोलता (सहज अवस्था) में टिका रहता हूँ।4।
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