Today Hukamnama Sri Darbar Sahib Amritsar Sahib, Harmandir Sahib Goldentemple, Morning Mukhwak, Date:- 09-12-20, Ang. 594
Hukamnama in Hindi With Meanings
सलोकु मः ३ ॥ सतिगुर नो सभु को वेखदा जेता जगतु संसारु ॥ डिठै मुकति न होवई जिचरु सबदि न करे वीचारु ॥ हउमै मैलु न चुकई नामि न लगै पिआरु ॥ {पन्ना 594}
अर्थ: जितना ये सारा संसार है (इसमें) हरेक जीव सतिगुरू के दर्शन करता है (पर) निरे दर्शन करने से मुक्ति नहीं मिलती, जब तक जीव सतिगुरू के शबद में विचार नहीं करता, (क्योंकि विचार किए बिना) अहंकार (-रूपी मन की) मैल नहीं उतरती और नाम के प्रति प्यार उत्पन्न नहीं होता।
इकि आपे बखसि मिलाइअनु दुबिधा तजि विकार ॥ नानक इकि दरसनु देखि मरि मिले सतिगुर हेति पिआरि ॥१॥ {पन्ना 594}
पद्अर्थ: मिलाइअनु = मिला लिए उसने। दुबिधा = दुचिक्तापन, मेर तेर।
अर्थ: कई मनुष्यों को प्रभू ने खुद ही मेहर करके मिला लिया है जिन्होंने मेर-तेर और विकार छोड़े हैं। हे नानक! कई मनुष्य (सतिगुरू के) दर्शन करके सतिगुरू के प्यार में बिरती जोड़ के मर के (भाव, स्वैभाव का अहंकार गवा के) हरी में मिल गए हैं।1।
मः ३ ॥ सतिगुरू न सेविओ मूरख अंध गवारि ॥ दूजै भाइ बहुतु दुखु लागा जलता करे पुकार ॥ जिन कारणि गुरू विसारिआ से न उपकरे अंती वार ॥ {पन्ना 594}
पद्अर्थ: गावारि = गवार ने। जिन कारणि = जिन की खातिर। उपकरे = पुकरे, आए।
अर्थ: अंधे मूर्ख गवार ने अपने सतिगुरू की सेवा नहीं की, माया के प्यार में जब बहुत दुखी हुआ तब जलता हुआ विरलाप करता है; और जिनके लिए सतिगुरू को विसारा था वे आखिरी वक्त पर (मुश्किल में) नहीं (उसका साथ देने पुकारने पर भी) नहीं आते।
नानक गुरमती सुखु पाइआ बखसे बखसणहार ॥२॥ {पन्ना 594}
अर्थ: हे नानक! गुरू की मति ले के ही सुख मिलता है और बख्शने वाला हरी बख्शता है।2।
पउड़ी ॥ तू आपे आपि आपि सभु करता कोई दूजा होइ सु अवरो कहीऐ ॥ हरि आपे बोलै आपि बुलावै हरि आपे जलि थलि रवि रहीऐ ॥ {पन्ना 594}
अर्थ: हे हरी! तू स्वयं ही स्वयं है और स्वयं ही सब कुछ पैदा करता है, किसी और दूसरे को जन्मदाता तब कहें, जो कोई और हो ही। हरी खुद ही (सब जीवों में) बोलता है, खुद ही सबको बुलाता है और खुद ही जल में थल व्याप रहा है।
हरि आपे मारै हरि आपे छोडै मन हरि सरणी पड़ि रहीऐ ॥ हरि बिनु कोई मारि जीवालि न सकै मन होइ निचिंद निसलु होइ रहीऐ ॥ {पन्ना 594}
अर्थ: हे मन! हरी खुद ही मारता है और खुद ही बख्शता है, (इस वास्ते) हरी की शरण में पड़ा रह। हे मन! हरी के बिना कोई और ना मार सकता है ना जीवित कर सकता है (इसलिए) निश्चिंत हो के लंबी तान ले (बेफिक्र हो जा, किसी और की ओट ना देख और सबसे बड़े हरी की आस रख)।
उठदिआ बहदिआ सुतिआ सदा सदा हरि नामु धिआईऐ जन नानक गुरमुखि हरि लहीऐ ॥२१॥१॥ सुधु {पन्ना 594}
अर्थ: हे दास नानक! अगर उठते-बैठते सोए हुए हर वक्त हरी का नाम सिमरें तो सतिगुरू के सन्मुख हो के हरी मिल जाता है।21।1। सुधु।
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