Today Hukamnama Sri Darbar Sahib Amritsar Sahib, Harmandir Sahib Goldentemple, Morning Mukhwak, Date:- 18-11-20, Ang. 757
Hukamnama in Hindi With Meanings
रागु सूही असटपदीआ महला ४ घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
कोई आणि मिलावै मेरा प्रीतमु पिआरा हउ तिसु पहि आपु वेचाई ॥१॥ दरसनु हरि देखण कै ताई ॥ क्रिपा करहि ता सतिगुरु मेलहि हरि हरि नामु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ जे सुखु देहि त तुझहि अराधी दुखि भी तुझै धिआई ॥२॥ जे भुख देहि त इत ही राजा दुख विचि सूख मनाई ॥३॥ तनु मनु काटि काटि सभु अरपी विचि अगनी आपु जलाई ॥४॥ पखा फेरी पाणी ढोवा जो देवहि सो खाई ॥५॥ नानकु गरीबु ढहि पइआ दुआरै हरि मेलि लैहु वडिआई ॥६॥ {पन्ना 757}
पद्अर्थ: आणि = ला के, आ के। हउ = मैं। पहि = पास, आगे। आपु = अपना आप। वेचाई = बेच दूँ।1।
कै ताई = वासते। करहि = (अगर) तू करे। मेलहि = तू मिला दे। धिआई = मैं ध्याऊँ।1। रहाउ।
इत ही = इतु ही, इस (भूख) में ही (‘इत’ की ‘ु’ की मात्रा ‘ही’ क्रिया विशेषण के कारण हट गई है)। राजा = रजां, मैं तृप्त रहूँ, अघाया रहूँ। मनाई = मनाऊँगा।3।
काटि = काट के। सभु = सारा। अरपी = अर्पित करूँ, मैं भेटा कर दूँ। आपु = अपना आप।4।
फेरी = फेरूँ। ढोवा = ढोऊँ। देवहि = तू देगा। खाई = मैं खाऊँ।5।
वडिआई = उपकार।6।
अर्थ: हे प्रभू! अगर तू (मेरे पर) मेहर करे, (मुझे) गुरू मिला दे, तो तेरे दर्शन करने के लिए मैं सदा तेरा नाम सिमरता रहूँगा।1। रहाउ।
हे भाई! अगर कोई (सज्जन) मेरा प्रीतम ला के मुझे मिला दे, तो मैं उसके आगे अपना आप बेच दूँ।1।
हे प्रभू! (मेहर कर) अगर तू मुझे सुख दे, तो मैं तुझे ही सिमरता रहूँ, दुख में भी मैं तेरी ही आराधना करता रहूँ।2।
हे प्रभू! अगर तू मुझे भूखा रखे, तो मैं इस भूख में ही तृप्त रहूँगा, दुख में मैं सुख प्रतीत करूँगा (तेरी ये मेहर जरूर हो जाए कि मुझे तेरे दर्शन हो जाएं)।3।
हे प्रभू! (तेरे दर्शन करने की खातिर अगर जरूरत पड़े तो) मैं अपना शरीर अपना मन काट काट के सारा भेटा कर दूँगा, आग में अपने आप को जला (भी) दूँगा।4।
हे प्रभू! (तेरे दीदार की खातिर, तेरी संगतों को) मैं पंखा झेलूँगा, पानी ढोऊँगा, जो कुछ तू मुझे (खाने के लिए) देगा वही (खुश हो के) खा लूँगा।5।
हे प्रभू! (तेरा दास) गरीब नानक तेरे दर पर आ गिरा है, मुझे अपने चरणों में जोड़ ले, तेरा ये उपकार होगा।6।
रागु सूही असटपदीआ महला ४ घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
कोई आणि मिलावै मेरा प्रीतमु पिआरा हउ तिसु पहि आपु वेचाई ॥१॥ दरसनु हरि देखण कै ताई ॥ क्रिपा करहि ता सतिगुरु मेलहि हरि हरि नामु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ जे सुखु देहि त तुझहि अराधी दुखि भी तुझै धिआई ॥२॥ जे भुख देहि त इत ही राजा दुख विचि सूख मनाई ॥३॥ तनु मनु काटि काटि सभु अरपी विचि अगनी आपु जलाई ॥४॥ पखा फेरी पाणी ढोवा जो देवहि सो खाई ॥५॥ नानकु गरीबु ढहि पइआ दुआरै हरि मेलि लैहु वडिआई ॥६॥ {पन्ना 757}
पद्अर्थ: आणि = ला के, आ के। हउ = मैं। पहि = पास, आगे। आपु = अपना आप। वेचाई = बेच दूँ।1।
कै ताई = वासते। करहि = (अगर) तू करे। मेलहि = तू मिला दे। धिआई = मैं ध्याऊँ।1। रहाउ।
इत ही = इतु ही, इस (भूख) में ही (‘इत’ की ‘ु’ की मात्रा ‘ही’ क्रिया विशेषण के कारण हट गई है)। राजा = रजां, मैं तृप्त रहूँ, अघाया रहूँ। मनाई = मनाऊँगा।3।
काटि = काट के। सभु = सारा। अरपी = अर्पित करूँ, मैं भेटा कर दूँ। आपु = अपना आप।4।
फेरी = फेरूँ। ढोवा = ढोऊँ। देवहि = तू देगा। खाई = मैं खाऊँ।5।
वडिआई = उपकार।6।
अर्थ: हे प्रभू! अगर तू (मेरे पर) मेहर करे, (मुझे) गुरू मिला दे, तो तेरे दर्शन करने के लिए मैं सदा तेरा नाम सिमरता रहूँगा।1। रहाउ।
हे भाई! अगर कोई (सज्जन) मेरा प्रीतम ला के मुझे मिला दे, तो मैं उसके आगे अपना आप बेच दूँ।1।
हे प्रभू! (मेहर कर) अगर तू मुझे सुख दे, तो मैं तुझे ही सिमरता रहूँ, दुख में भी मैं तेरी ही आराधना करता रहूँ।2।
हे प्रभू! अगर तू मुझे भूखा रखे, तो मैं इस भूख में ही तृप्त रहूँगा, दुख में मैं सुख प्रतीत करूँगा (तेरी ये मेहर जरूर हो जाए कि मुझे तेरे दर्शन हो जाएं)।3।
हे प्रभू! (तेरे दर्शन करने की खातिर अगर जरूरत पड़े तो) मैं अपना शरीर अपना मन काट काट के सारा भेटा कर दूँगा, आग में अपने आप को जला (भी) दूँगा।4।
हे प्रभू! (तेरे दीदार की खातिर, तेरी संगतों को) मैं पंखा झेलूँगा, पानी ढोऊँगा, जो कुछ तू मुझे (खाने के लिए) देगा वही (खुश हो के) खा लूँगा।5।
हे प्रभू! (तेरा दास) गरीब नानक तेरे दर पर आ गिरा है, मुझे अपने चरणों में जोड़ ले, तेरा ये उपकार होगा।6।
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