Hukamnama sahib Darbar sahib Amritsar sahib, morning Mukhwaak, 30/10/2020, ang No. 761
Hukamnama sahib in English
सूही महला ५ ॥ सिम्रिति बेद पुराण पुकारनि पोथीआ ॥ नाम बिना सभि कूड़ु गाल्ही होछीआ ॥१॥ नामु निधानु अपारु भगता मनि वसै ॥ जनम मरण मोहु दुखु साधू संगि नसै ॥१॥ रहाउ ॥ मोहि बादि अहंकारि सरपर रुंनिआ ॥ सुखु न पाइन्हि मूलि नाम विछुंनिआ ॥२॥ मेरी मेरी धारि बंधनि बंधिआ ॥ नरकि सुरगि अवतार माइआ धंधिआ ॥३॥ सोधत सोधत सोधि ततु बीचारिआ ॥ नाम बिना सुखु नाहि सरपर हारिआ ॥४॥ {पन्ना 761}
पद्अर्थ: पुकारनि = (जो मनुष्य कर्म-काण्ड आदि का राह) ऊँचा ऊँचा पुकारते बतलाते फिरते हैं। सभि = सारे। गाली = बातें। होछीआं = थोथी बातें।1।
निधानु = खजाना। अपारु = बेअंत। मनि = मन में। साधू संगि = गुरू की संगति में।1। रहाउ।
मोहि = मोह में। बादि = झगड़े में। अहंकारि = अहंकार में। सरपर = जरूर। रुंनिआ = रोते हुए। न पाइनि् = नहीं पाते। मूलि = बिल्कुल। विछुंनिआ = विछुड़े हुए।2।
मेरी मेरी धारि = माया की ममता ख्याल मन में टिका के। बंधनि = (मोह के) बंधनों में। नरकि = नर्क में, दुख में। सुरगि = स्वर्ग में, सुख में। अवतार = जनम।3।
सोधत = विचार करते हुए। सोधि = विचार करके। ततु = अस्लियत। हारिआ = (जीवन की बाजी) हारते हैं।4।
अर्थ: हे भाई! परमात्मा के नाम का बेअंत खजाना (परमात्मा के) भक्तों के हृदय में बसता है। गुरू की संगति में (नाम जपने से) जनम-मरण के दुख और मोह आदि हरेक कलेश दूर हो जाते हैं।1। रहाउ।
हे भाई! जो मनुष्य वेद-पुराण-स्मृतियाँ आदि पुस्तकें पढ़ कर (नाम को किनारे छोड़ के कर्म काण्ड आदि के उपदेश) ऊँचे स्वरों में सुनाते फिरते हैं, वे लोग थोथी बातें करते हैं। परमात्मा के नाम के बिना झूठा प्रचार ही ये सारे लोग करते हैं।1।
हे भाई! प्रभू के नाम से विछुड़े हुए मनुष्य कभी भी आत्मिक आनंद नहीं पाते। वह मनुष्य माया के मोह में, शास्त्रार्थ में, अहंकार में फंस के अवश्य दुखी होते हैं।2।
हे भाई! (परमात्मा के नाम से टूट के) माया की ममता का विचार मन में टिका के मोह के बँधन में बँधे रहते हैं। निरी माया के झमेलों के कारण वे लोग दुख-सुख भोगते रहते हैं।3।
हे भाई! अच्छी तरह पड़ताल करके निर्णय करके हम इस सच्चाई पर पहुँचे हैं कि परमात्मा के नाम के बिना आत्मिक आनंद नहीं मिल सकता। नाम से टूटे रहने वाले अवश्य ही (मनुष्य जन्म की बाजी) हार के जाते हैं।4।
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