Ajj Da Hukamnama Sahib Sri Darbar Sahib Amritsar Sahib, Harmandir Sahib Goldentemple, Morning Mukhwak, Date:- 12-10-20, Ang. 760
Hukamnama in Hindi With Meanings
रागु सूही महला ५ घरु ३ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मिथन मोह अगनि सोक सागर ॥ करि किरपा उधरु हरि नागर ॥१॥ चरण कमल सरणाइ नराइण ॥ दीना नाथ भगत पराइण ॥१॥ रहाउ ॥ अनाथा नाथ भगत भै मेटन ॥ साधसंगि जमदूत न भेटन ॥२॥ जीवन रूप अनूप दइआला ॥ रवण गुणा कटीऐ जम जाला ॥३॥ अम्रित नामु रसन नित जापै ॥ रोग रूप माइआ न बिआपै ॥४॥ जपि गोबिंद संगी सभि तारे ॥ पोहत नाही पंच बटवारे ॥५॥ मन बच क्रम प्रभु एकु धिआए ॥ सरब फला सोई जनु पाए ॥६॥ धारि अनुग्रहु अपना प्रभि कीना ॥ केवल नामु भगति रसु दीना ॥७॥ आदि मधि अंति प्रभु सोई ॥ नानक तिसु बिनु अवरु न कोई ॥८॥१॥२॥ {पन्ना 760}
पद्अर्थ: मिथन = नाशवंत। अगनि = (तृष्णा की) आग। सोक = शोक, चिंता। सागर = समुंद्र। करि = कर के। उधरु = बचा ले। हरि नागर = हे सुंदर हरी!।1।
नराइण = हे नारायण! पराइण = आसरा।1। रहाउ।
भै = (‘भउ’ की बहुवचन) सारे डर। साधसंगि = संगति में। भेटन = नजदीक छूता।2।
अनूप = अद्वितीय। रवण = सिमरन।3।
अंम्रित = आत्मिक जीवन देने वाला। रसन = जीभ (से)। न बिआपै = जोर नहीं डाल सकती।4।
संगी = साथी। सभि = सारे। पंच = पाँच। बटवारे = लुटेरे, डाकू।5।
बच = वचन। क्रम = कर्म। धिआऐ = ध्याता है।6।
धारि = धारण करके। अनुग्रहु = कृपा। प्रभि = प्रभू ने। रसु = स्वाद।7।
आदि मधि अंति = सदा ही। आदि = जगत के आरम्भ में। मधि = बीच के समय। अंति = आखिर में।8।
अर्थ: हे गरीबों के पति! हे भक्तों के आसरे! हे नारायण! (हम जीव) तेरे सुंदर चरणों की शरण में आए हैं (हमें विकारों से बचाए रख)।1। रहाउ।
हे सुंदर हरी! नाशवंत पदार्थों का मोह, तृष्णा की आग, चिंता के समुंद्र में से कृपा करके (हमें) बचा ले।1।
हे निआसरों के आसरे! हे भक्तों के सारे डर दूर करने वाले! (मुझे गुरू की संगति बख्श), गुरू की संगति में रहने से जमदूत (भी) नजदीक नहीं फटकते (मौत का डर नहीं व्यापता)।2।
हे जिंदगी के श्रोत! हे अद्वितीय प्रभू! हे दया के घर! (अपनी सिफत-सालाह बख्श), तेरे गुणों को याद करने से मौत के जंजाल कट जाते हैं।3।
हे भाई! जो मनुष्य अपनी जीभ से सदा आत्मि्क जीवन देने वाला हरी-नाम जपता है, उस पर ये माया जोर नहीं डाल सकती, जो सारे रोगों का मूल है।4।
हे भाई! सदा परमात्मा का नाम जपा कर (जो जपता है) वह (अपने) सारे साथियों को (संसार-समुंद्र से) पार लंघा लेता है पाँचों लुटेरे उस पर दबाव नहीं डाल सकते।5।
हे भाई! जो मनुष्य अपने मन से, कर्मों से एक परमात्मा का ध्यान धरे रखता है, वह मनुष्य (मानस जन्म के) सारे फल हासिल कर लेता है।6।
हे भाई! परमात्मा ने कृपा करके जिस मनुष्य को अपना बना लिया, उसको उसने अपना नाम बख्शा, उसको अपनी भक्ति का स्वाद दिया।7।
हे नानक! वह परमात्मा ही जगत के आरम्भ से है, अब भी है, जगत के आखिर में भी रहेगा। उसके बिना (उसके जैसा) और कोई नहीं है।8।1।2।
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