Ajj Da Hukamnama Sahib Sri Darbar Sahib Amritsar Sahib, Harmandir Sahib Goldentemple, Morning Mukhwak, Date:- 22-08-20, Ang. 703
Hukamnama in Hindi With Meanings
जैतसरी महला ९ ॥ हरि जू राखि लेहु पति मेरी ॥ जम को त्रास भइओ उर अंतरि सरनि गही किरपा निधि तेरी ॥१॥ रहाउ ॥ महा पतित मुगध लोभी फुनि करत पाप अब हारा ॥ भै मरबे को बिसरत नाहिन तिह चिंता तनु जारा ॥१॥ कीए उपाव मुकति के कारनि दह दिसि कउ उठि धाइआ ॥ घट ही भीतरि बसै निरंजनु ता को मरमु न पाइआ ॥२॥ नाहिन गुनु नाहिन कछु जपु तपु कउनु करमु अब कीजै ॥ नानक हारि परिओ सरनागति अभै दानु प्रभ दीजै ॥३॥२॥ {पन्ना 703}
पद्अर्थ: हरि जू = हे प्रभू जी! पति = इज्जत। जम को त्रास = मौत का डर। उर = उरस, हृदय। गही = पकड़ी। किरपा निधि = हे कृपा के खजाने!।1। रहाउ।
पतित = विकारों में गिरा हुआ, पापी। मुगध = मूर्ख। फुनि = पुनः, दोबारा, फिर। हारा = थक गया। भै = (‘भउ’ का बहुवचन) डर। को = का। तिह = उसकी। जारा = जला दिया है।1।
उपाव = (‘उपाउ’ का बहुवचन) कोशिशें। मुकति = (डर से) खलासी। के कारनि = के वास्ते। दह दिसि = दसों दिशाओं से। उठि = उठ के। निरंजनु = माया की कालिख से रहित। ता को = उसका। मरमु = भेद।2।
अब = अब। कीजै = किया जाए। सरनागति = शरण आया हूँ। अभै दानु = मौत के डर से निर्भयता का दान। प्रभ = हे प्रभू! दीजै = दें।3।
अर्थ: हे प्रभू जी! मेरी इज्जत रख लो। मेरे हृदय में मौत का डर बस रहा है (इससे बचने के लिए) हे कृपा के खजाने प्रभू! मैंने तेरा आसरा लिया है।1। रहाउ।
हे प्रभू! मैं बड़ा विकारी हूँ, मूर्ख हूँ लालची भी हूँ, पाप करते-करते अब मैं थक गया हूँ। मुझे मरने का डर (किसी भी वक्त) भूलता नहीं, इस (मरने) की चिंता ने मेरा शरीर जला दिया है।1।
हे भाई! (मौत के इस सहम से) खलासी हासिल करने के लिए मैंने अनेकों प्रयास किए हैं, दसों दिशाओं में उठ-उठ के दौड़ा हूँ। (माया के मोह से) निर्लिप परमात्मा हृदय में ही बसता है, उसका भेद नहीं समझा।
हे नानक! (कह– परमात्मा की शरण पड़े बिना) कोई गुण नहीं कोई जप-तप नहीं (जो मौत के सहम से बचा ले, फिर) अब कौन सा काम किया जाए? हे प्रभू! (और तरीकों से) हार के मैं तेरी शरण आ पड़ा हूँ। तू मुझे मौत के डर से खलासी का दान दे।
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